मेरे मंजिलों का शहर कुछ इस कदर रूठ गया। जिसका भी थामा हाथ वो आगे चलकर छुट गया। मैं गमों का समन्दर पार करता भी कैसे। कभी कस्ती टूट गई तो कभी दरिया सूख गया।
दिये जो जख़्म सीने में उसे नासूर ना करना। तु अपने हुस्न और जलवों पर गुरूर ना करना। तुझे जाना ही होगा तो शराफत से चली जाना, मैं उठाऊं अपनी कलम मुझे मजबूर ना करना॥
जब जब प्रश्न पूछा गया 'जीवन कैसे जिया जाता है?' तब उनका जन्म हुआ और उत्तर के देने लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं सहा, ये सब देखने के बाद दुनिया ने उन्हें 'भगवान' कहा।