ग़मो ने नहीं छोड़ा मेरा पीछा कभी,
मिली कभी खुशी वो भी बस दो पल की,
फिर सोचा ये ग़मो का झोला भला किसे नहीं मिला,
फिर कब तक यूं ही करती रहूंगी मैं खुद से गिला,
तब खुद को सब भूलाकर , फिर से जीना सिखाया,
फिर मैंने अपनी खुशी के साथ अपने ग़मो का भी जश्न मनाया,
और अपना गिरा हुआ आत्मविश्वास, फिर से उठाया।।
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