मुझे पढ़ने की जल्दी मालूम पड़ती है ,
देखो आउट ऑफ सिलेबस हूं मैं ,
पहले तुम ग्रेजुएट तो हो जाओ।
बगैर अल्फाजों की किताब हुँ में ,
वो हुनर ले आओ जिससे पढ़ सको ,
दर्द अश्क ख्वाब नींद इंतजारी जाने क्या क्या है पास,
देखो जरा कुछ ले ना आना।
ऐ किस हुनर का गुरूर है तुम्हें ,
इश्क ऐ दौर से गुजरा हूं मैं ,
पत्थर जो पत्थर का पत्थर ही रहा।
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