देखूँ जो, रुख़-ए-दिलरुबा आहिस्ता आहिस्ता, तो आहिस्ते से कहदूँ कि आना ज़रा आहिस्ता, कि गुल होते नाज़ुक हैं पहली खिलन के यारा, कि, ज़रा छेड़ बाद-ए-सबा आहिस्ता आहिस्ता...
अंतर्मन साफ था ना ? फिर इतने नकाब क्यों देखो ना क्या हाल हो गया है इन नकली चेहरों की सड़ांध अब वहां भी बदबू पैदा करने लगा है चुभता नहीं ? तुम्हारे सीने में वह दिल का टुकड़ा जो फर्श पर बिखरा पड़ा है अरे यह क्या ! यूं कशमकश में ना डालो मुझे अश्कों से तर यह चेहरा कौन सा है जरा इत्ला दो मुझे