हमको पत्थर पहाड़ नदियाँ अपने पास बुलाती है
तुम सुनो पतझड़ मौषम हवाएँ लोरियां सुनाती है
महसूस करना कड़कड़ाती बादलों की गर्जना को
वो आसमां से अपने विरह की पीड़ा को बताती है
कभी ध्यान से सुनना जमींन के बदन पर थिरकती
वर्षा की बुंदों को वो संयोग श्रृंगार मैं कुछ गाती हैं
प्रकृति के इस चक्र में बंधी है हर इंसान की सांसे
अगर एक चक्र भी टूटा तो प्रकृति बहुत रुलाती हैं
अक्सर जब जीव जन्तुओं की कड़ी टूट जाती हैं
तब मानव जीवन पर जब संकट की घड़ी आती है
"कपिल" आपदाएं सब कुछ नष्ट कर जाती हैं पर
असल में वो इंसान को उसकी औकात दिखाती है
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