ज़िंदगी 'दही बड़े' कि तरह ही है..
जिसमें दाल पहले पानी मे भींगता है, फिर पिसता है, फिर हाथों से थपथपाया जाता है, फिर गर्म तेल मे तल्ला जाता है, उसके बाद फिर उसे इमली के ठंडे पानी मे डालकर रात भर छोड़ दिया जाता है, और आखिर मे दही, नमक, मिर्च और मसाला डालते हैं, तब जाकर' दही बड़े' का स्वाद लेते हैं..
वैसे ही जिंदगी जब ऐेसे ही लम्हों से होकर गुजरती है तब जाकर खूबसूरत लगती है.. हाँ शायद तब जाकर हम जिंदगी का स्वाद ले पाते हैं.. जिसमें 'दही बड़े' की तरह खट्टे मीठे यादों का स्वाद होता है....
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