" मालूम है मुझकों ..... "
है ग़म मुझें भी तेरे बिख़र जाने का,
मगर है क्या ये जरूरी, मालूम नही मुझकों,
ना बचा हूँ ख़ुद में मैं भी बिल्कुल मामूली सा,
मगर कुछ बचा भी है तुझसा, मालूम नही मुझकों,
साँसें रेंगती है सिर्फ़ जिस्म जिंदा रखने को,
मगर रूह बाक़ी भी है मेरी, मालूम नही मुझकों,
हर तरफ़ नज़र आता है इश्क़ तेरे हिस्से का,
मगर ख़ाली मेरा हिस्सा भी है, मालूम नही मुझकों,
आँसू गिरते है आँखों से तेरा ख़्वाब जाने तक को,
मगर दर्द अब भी ताज़ा है मेरा, मालूम नही मुझकों,
खो चुके हो वक़्त के साथ हर तरह के रिश्ते को,
मगर उस पार तुम मेरे हो, मालूम है मुझकों......!!
-