है शूरवीर वो, या है संत कोई, ना रखता किसी से लालसा।
गोबिंद के रस्ते पर, चलेगा जो,वो राज करेगा बन खालसा।
कर्तव्य धर्म की, नींव पर जिसने, अपना सर्वस्व लुटाया है।
वो वीर किसी इक धर्म का नहीं, पूरे भारत का सरमाया है।
जिसके त्याग से सूरज है रोशन, वो जैसे हो प्रातः काल सा।
है शूरवीर वो, या है संत कोई, ना रखता किसी से लालसा....
मात्रभूमि की अस्मिता की, जिसने अपने प्राणों से रक्षा की।
आनंदपुर, चमकौर और बसोली, हर युद्ध में अग्नि परीक्षा दी।
हर अधर्मी तानाशाह को, दिखाया अपना स्वरूप काल सा।
है शूरवीर वो, या है संत कोई, ना रखता किसी से लालसा....
हर अदने को, सिंह बना, जिसने लाखों से लड़ने को दीक्षा दी।
हर सुप्त हृदय को, भर देश प्रेम में, जा मर मिटने की शिक्षा दी।
उत्साह से भर, जैसे मानो, चिड़िया को किया बाज़ विशाल सा।
है शूरवीर वो या है संत कोई ना रखता किसी से लालसा....
केश कंघा कड़ा, कृपाण कशेरा, जिसने गुरु नियम बनवाया।
पांच प्यारे को ढूंढ सर्वप्रथम, जिनको था अमृत पिलवाया।
सर्वस्व समर्पण के नए पंथ को, जिसने नाम दिया था खालसा।
है शूरवीर वो या है संत कोई ना रखता किसी से लालसा....
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