सर्वप्रथम हिंदी दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं💐 | आज इस अवसर पर मैं अपने जीवन के कुछ अनुभव बाँटना चाहूँगी| अपने विद्यालय काल में मैंने कभी एक बहुत गूढ़ बात पढ़ी थी- "जो मनुष्य अपनी माँ का नहीं हो सकता वह किसी का नहीं हो सकता" | आज हम अपने देश की भाषा हिन्दी को छोड़ विदेशी भाषा के प्रति इस कदर आकर्षित हो गए हैं कि हम हिन्दी बोलने वाले लोगों का अपमान करने और उन्हें निकृष्ट बताने से तक गुरेज नहीं करते| यहाँ मैं इन अंग्रजी प्रेमियों को एक तथ्य बताना चाहूँगी|
हिंदी कैद हो गयी पिछले कुछ सालों में अंग्रेजी तालों में
न हम तालों को तोड़ रहे न ही हिंदी को छोड़ रहे बस तथ्य को तोड़ मरोड़ रहे नये उपाय जोड़ रहे राजस्थानी, मैथिलि, भोजपुरी में हिंदी भाषियों को तोड़ रहे ताकि हिंदी हो जाये कमजोर और कोतवाल को डाँट सके उल्टा चोर