तुझमे ढलते ढलते
मैं खुद को भूलने लगी थी!
इंतज़ार महज़ एक बहान था
तुमको वक्त के साथ अब समझने लगी थी!
माना ज़ालिम है यह ज़माना बहुत
तुम्हे ज़माने से अलग मानने लगी थी!
वजह तो कुछ भी नहीं था मगर
मैं बेवजह ही तुम्हे चाहने लगी थी!
पर जो हुआ चलो अच्छा ही हुआ,
इस झूठे सपने से तुमने मुझे जगा तो दिया!
कौन हूँ मैं, यह मुझे बाता तो दिया!
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