कहानी कुछ अनकही सी
ये दिवारें आज भी कहती है
दबी दबी आवाज़ो मे
तुम्हें पुकारा आज भी करती है
दर्द, गम और तनहाई - इसके साथी से हो गए है
दिया जो तुमने था तोहफ़ा मुजम्मिल सलामत आज भी रखती है
छोड़ गए थे तुम जो वादे - यादें अपने
मुसलसल सदियों से, महफूज हर कदम, सम्भाला आज भी करती है
कहानी कुछ अनकही सी...
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