प्रिय सागर,
अरसे बाद आज तुम्हारे लिखे खतों को छुआ है। पुरानी धूल पर कुछ बूंदें गिरने से अंगुलियां सौंधी माटी की महक से भीग गई। पिछले महीने आये तूफान की वजह से मोटी परत सी जम गई थी धूल की । तूफ़ान का आना-जाना भी जरूरी था अन्यथा वंचित ही रह जाती इन खतों से आती महक से । तुम्हें याद भी या नहीं वो नैनीताल के सैर-सपाटे, रंग-बिरंगी झील में रोशनी के प्रतिबिम्ब और नयनों में खिले वो दिवास्वप्न के फूल अचानक रेडियो पर गाने का बजना "दिल झूम झूम" आंखों के सामने जैसे रील घूम रही है।और अधरों के आकार में आया परिवर्तन। मुस्कुराहट मतलब तुम्हारा साथ । मुस्कुराहट मतलब झील के साये में तेरे हाथों में मेरा हाथ।काश तुम यूं मिलते जैसे मिलते हैं शब्दों से अक्षर,काश तुम्हारे खतों में फिर उभरती तुम्हारी चाह ,काश तुम में दिखता मेरा शहर, जो फूल पलाश के खिलें हैं काश वो अकेले यूं जमीं पर न गिरते ।काश ...हम मिलते।
तुम्हारी मैं
प्रतीक्षारत
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