आज अपनी पुरानी नोटबुक के हाशिये पर लिखे कुछ अंक दिखे
उनमे कुछ फ़ोन नंबर थे, जिन्हें शायद सिर्फ एक बार कॉल करना था,
उनमे से कोई भी नंबर अब मेरी फोनबुक में नहीं है
कुछ जल्दबाज़ी में की गयी कैलकुलेशन्स थीं शायद,
के और कितना खर्च सकता हूँ महीने में,
के उधार न लेना पड़े फिर से
कुछ नयी पेन को आज़माने में लिखे गए बेमतलब अंक भी थे
और कुछ तारीखें भी लिखी थीं,
जो अब मुझे किसी खास मौके की याद तो नहीं दिलातीं
मगर शायद उन्ही कुछ तारीखों ने मुझे मैं बनाया होगा,
मेरे तब और अब के मैं का फासला तय कराया होगा।
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