हों गया हैं शंखनाद
अब अहिंसा का बिगुल बजाना हैं,
पंथों में ना बटना जैनियों,
हमें जिनशासन का मान बढ़ाना हैं|
तेरह पंथ से बिसपंथ तक,
मंदिर से स्थानक तक,
क्या बदला;क्या पाया तुमनें,
बटवाँरा कर जिनशासन का मान गिराया हैं |
महावीर ने ना पंथ बनाये,
ना ही पंथों में बाँटा हैं ,
तो फिर; क्यों तुम पंथ बनाते,
जब महावीर ने एक बनाया हैं |
आ गया वह शुभ अवसर अब,
पंथों कों खण्डि़त कर,
जैनत्व को अखण्ड़ बनाना हैं|
आओं सब मिलकर एक बनें,
जिनशासन का मान बढ़ाते चलें,
अनुनायी हैं हम महावीर कें,
महावीर कें उपदेशों का पालन करतें चलें |
आओं सब मिलकर एक बनें |
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