सुख गई हैं जड़े,
बिखर गई है टहनियां,
वक़्त का मौसम है,
ये हाथ अब बूढ़े हो चले हैं।।
सिकुड़ गई हैं आँखें,
बढ़ गई हैं झुर्रिया,
वक़्त का मौसम है,
ये पैर अब लड़खड़ाने लगे हैं।।
गिनवा रहे अब गलतियां ,
जिन्हें सिखाई थी कभी गिनती,
वक़्त का मौसम है,
अब उन्हें बोझ लगने लगे हैं।।
सुख गई हैं जड़े,
बिखर गई है टहनियां,
वक़्त का मौसम है,
ये हाथ अब बूढ़े हो चले हैं।।
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