और वह सूखा वृक्ष
आज भी प्रतीक्षित है
काले मेघ का ;
मृदु पत्रों से वृंत का
पुनः रक्षावरण देखने ,,
अधीर है ;
फलों का उन्माद
पुनः चहुंओर बिखेरने की कांक्षा है
क्यूंकि... चाह है ,,
फिर इक नीड़ की
सूखे वृक्ष को
पुनः कलरव की अभिलाषा है
क्यूंकि ..
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घृणा है उसे - " एकांत से " ।।
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