मेरे बिना वो राहें तकती है
एक लड़की है जो मुझे पागल कहती है,
कभी धूप सी होती है कभी छाँव बन जाती है
शामों सुबह पहरों पहर मेरी तलाश में रहती है
मेरी हठधर्मी मेरी शिकायतें सब ही सहती है
एक लड़की है जो सिर्फ मुझे पागल कहती है,
कहानियों में सिर्फ मेरी कहानियां वो पढ़ती है
नए पुराने सारे ही शौक वो शिद्दत सी रखती है
कभी मैं भूलूं खुद को तो याद सी वो होती है
एक लड़की है जो मुझे पागल कहती है,
मेरे लिए न जाने कितनी ही रातें वो खुदमें जगती है
हिसाब मेरी आवाज़ का नींद से पहले वो रखती है
कई बार मैं खुद ही हँस देता हूँ उसके सामने आते ही
जब वो लड़की मुझे पागल कहती है,
इक डोर सी बांधें मेरी छूटती साँसों को रखती है
मेरे चेहरे पे झिझक मुझसे ज्यादा ख़ुद वो पढ़ती है
ख़ुद झल्ली सी फिरती है ज़माने में सरेआम
पर वो लड़की पागल मुझे कहती है,
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