एक शायर की कोई उम्र नहीं होती
और ना ही वो एक लम्हें का मोहताज होता है,
वो एक ही लम्हें में कई सदियाँ जीता है
कई लम्हों से रूबरू होता है
और कई सारे जन्म लेता है।
वो बचपन में ही बड़ा हो जाता है,
जवानी में बेबस हो जाता है,
और बुढ़ापे में भी मासूम रहता है।
एक शायर का कोई एक मुकाम नहीं होता
ना ही एक रहगुज़र होती है,
वो तो बस लफ्ज़ों की पोटली बाँधे
हर रोज़ कुछ एहसासों के रास्ते निकल पड़ता है,
और जहाँ किनारा मिला
बस वहीं समेट लेता है अपनी दास्ताँ।
एक शायर की ज़िन्दगी में कभी रिश्ते नहीं होते,
होते है तो बस लफ्ज़, एहसास और कलम
जिनके साथ वो ता-उम्र सफ़र करता जाता है,
ना कोई पहचान होती है, ना कोई पता
बस ख़्यालों की गलियों में भटकता मर जाता है,
एक शायर की ज़िन्दगी में खुद शायर भी नहीं होता,
बस उसका अक्स नज़र आता है।
एक शायर की शक्ल और सूरत
बस उसकी नज़्में होती है,
उसकी रूह
लफ्ज़ों के दरमियाँ खाली जगहों में होती है
और उसकी शख्सियत
चीखती हुई खामोशी-सी होती है,
एक शायर की कोई उम्र नहीं होती!
#PoolofPoems
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