कभी दीये से दीया जलाकर तो देखो,बाती में आग लगाकर तो देखो,तेल मे डूबी हुई रूई को अग्नि मे झुलसाकर तो देखो।उसकी सुगन्ध से घर आँगन महकाकर तो देखो।
कभी दीये से दीया जलाकर तो देखो,माटी का दीया वो बनता है हाथ से,मशीनों से नहीं वो बनता जज़्बात से,कभी कुम्हार के चाक पे हाथ घुमाकर तो देखो।चकरेटी को गुल्बी में फंसाकर तो देखो,अपने हाथ से तुम दीया बनाकर तो देखो।कभी दीये से दीया जलाकर तो देखो।
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