"पुराने खेल"
गलिया वहीं हैं, पर "ऊंच नींच का पापड़ा", अब सुनाई नहीं देता,
"पौषन पा, भाई पौषन पा" खेलता, कोई भी, अब दिखाई नहीं देता,
शायद कुछ माएं, अब भी बच्चों के साथ "आई स्पाईस" खेलती हैं,
"कोकला चिपाके जुम्मे रात" का अब, शोर तक, सुनाई नहीं देता,
अब तो कोई "स्टापू", "पिट्ठू गरमागरम" का नामलेवा भी, नहीं है,
"कंचों" की, "लट्टुओं" की, "गीटों" की, कोई बालक, सुध तक नहीं लेता।
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