इस वीराने से शहर में,
अपने खो गए हैं।
पाने जो निकले थे मंज़िल,
लगता है सफर में सपने खो गए हैं।
भीड़ कुछ इस कदर हैं यहां पर,
कि साथ रह कर भी अकेले हो गए हैं।
कहने को हर कोई है अपना,
पर दिलों से सब पराए हो गए हैं।
शायद नहीं हैं सब मतलबी
पर जरूरतों और लालच के कारण,
सब मतलबी हो गए हैं।
इस वीराने से शहर में,
अपने खो गए हैं।...
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