तुम्हारे आँखों के "जलमहल" में फंसकर,
मेरा इश्क़ तेरे यमुना के घाट में डूब जाता हैं |
ये दिल भी महकता था कभी "सिसोदिया गार्डन" सा,
अब यादों का "अल्बर्ट हॉल म्यूजियम" बना जाता हैं |
तुम लगती हो ख़ूबसूरत जैसे "हवामहल की खिड़की" हो,
देख तुम्हे इस दिल को "रावत कचोरी" सा स्वाद आ जाता हैं |
तेरी चमकती सूरत के "बिरला मंदिर" को देखकर,
मेरा मन भी "गढ़ गणेश" सा पवित्र हो जाता हैं |
मुस्कराहट खूबसूरत तेरी जैसे "WTP" की शाम हो,
उस पर मेरा दिल "मालवीय नगर" के ट्रेफिक जाम सा रुक जाता हैं |
"आमेर महल" के वैभव वाली,"कंचन केसरी" सी प्यारी लगती हो,
"जंतर मंतर" सी आकर्षक तुम, मेरे दिल में बसती हो |
"गोविन्द देव जी" के आशीर्वाद से, आज में ये लिखता हूँ,
खूबसूरत हो तुम *जयपुर* जैसी,में तुमसे प्रेम करता हूँ।
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