दुनिया के इस शोर में भी कोई गुमसुम सा है
किसी ने चाहा था तुम्हें बहुत, तुम्हें खबर है क्या ?
बीता दिए हैं मैंने हर लम्हें बस तेरी याद में
तूने सोचा जो चला गया, कोई रहगुज़र है क्या ?
लिख देता था जिसका नाम अल्फ़ाज़ों में अपने
ज़रा पूछना उससे जाकर, उसे मेरी क़दर है क्या ?
क्या बयाँ करूँ, क्या दिखाऊँ हाल-ए-दिल अपना
जो नज़र इश्क़ न देख पाए, वो नज़र, नज़र है क्या ?
मेरी पाक मोहब्बत तड़पती रही इन्तेजार में
तूने पूछा बस माटी के ढ़ेर से, मेरी क़ब्र है क्या ?
मिटाये नहीं मिटती ये कालिख़ इश्क़ की 'अभय'
पूछूँगा इश्क़बाजों से, दर्द की उम्र, उम्र भर है क्या ?— % &
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