तुम्हें पूरा हक़ मिला है मोहब्बत में।
कितनी कमज़ोर सलाखें हैं ये
देखो कितनी चैन से साँस ले पा रही मैं।
तुम्हें पूरा हक़ मिला है मोहब्बत में
तो इस हक़ का फ़ायदा मेरी मौत तक उठाओ।
मेरी धड़कन को अपने शक के चाबुक से
इतनी बेहरमी से मारो कि घाव रूह में दिखे
मेरे दिल पर ये मामूली खंज़र न चलाओ
इसे जलते कोयले में ऐसे जलाओ कि
फीकी लगे वो आग भी, जो मेरी लाश जलाये
महज़ दिखावा ही तो है मेरी आँखों से बहता पानी
इतना मजबूर करो इन्हें कि ये हमेशा के लिये बन्द हो जाये
अरे! तुम्हें पूरा हक़ मिला है मोहब्बत में।
तुम सरताज हो और मैं तुम्हारी जागीर
तो गुलामों से नरमी, कभी देखी है तुमने?
तुम ऊँचे रुतबे वाले और मैं मोहब्बत में हारी
तो अपने ग़ुरूर में कमी, कभी देखी है तुमने?
भूला मत करो कि तुम कितने पत्थर हो
तो सौदेबाज़ी में मेरी इज़्ज़त हज़म कैसे हो तुम्हें?
ज़लील करो मुझे। तमाशा बनाओ मेरा।
तुम्हें पूरा हक़ मिला है मोहब्बत में।
एहसास है मुझे- मेरी मोहब्बत की कोई कीमत नहीं
एहसास है मुझे- मैं बस एक गुलाम तुम्हारे लिये
एहसास है मुझे- मेरी साँसों पर भी मेरा हक़ नहीं
एहसास है मुझे- मेरा ज़मीर, ज़मीर नहीं तुम्हारे लिये
एहसास है मुझे- मैं पागल। मुझे लत तुम्हारी बुरी लगी।
एहसास है मुझे- आज़ादी मेरी, मेरे मौत में छिपी
मैं इंतेज़ार में हूँ, तुम मारो मुझे इत्मिनान से
तुम्हें पूरा हक़ मिला है मोहब्बत में। (गीतिका चलाल)
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