शुभ्रता छाई चहुँ ओर,
नैनों में,सजती भी है.......
लवण गुण-वर्ण ना
कुछ अहर्निश चुभती सी है.....
मरूधरा की तरह,
हृदय मही पर......
सुदूर तक बस.....नून न न्यून.....
निस्सीम प्रेम की संवेदनाओं
की मूल झकझोर, हिल जाती है.....
सम्प्रेषित हो जाती है........
प्रवाही हो जाता है.....
अबसार से वह नमक
क्षार-क्षार.....बेजार ........
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