इल्तजा इतनी सी थी के तुम आ जाती तो अच्छा होता बहार सी बन मेरे दिल पर छा जाती तो अच्छा होता झूम कर सावन सा आकर बरस जाती तो अच्छा होता मुझसे मिलने को तेरी आंखे भी तरस जाती तो अच्छा होता
नजर हटे उनके चेहरे से तो महफ़िल पर ध्यान जाए उसे छोड़ कर कह दो सारे मेहमान जाए अब वो यही ठहर जाए तो अच्छा होगा डर है वो बाहर कदम बढ़ाए और इधर से जान जाए