हैं वक़्त के हाथों में कहीं क़ैद कुछ फैसले मेरे,
जो बढ़ा रहे हैं सबसे दिन-ब-दिन फासले मेरे
नहीं पता कि बनी दूरियाँ, कभी कम होंगीं भी
या फिर टूट ही जाएंगे हर एक से ये रिश्ते मेरे
पहले न पड़ा फर्क, किसी के बिछड़ने से मुझे
पर डरता हूँ अब, कहीं छूट न जाये अपने मेरे
बेशक़ नहीं साथ रोशनी का इस सफर में कहीं
पर ये जरूरी नहीं कि, साथ न हो परछाई मेरे
या मौला न कर देर मेरे इंसाफ में अब जरा भी
टूटे तो हैं ख़्वाब पर इन्हें मिट्टी में न मिलाना मेरे
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