एक बात ज़ेहन में मेरी , खटकती है ,
पूछूँ तो क्या तुम बताओगे मुझें।
थोड़ा उदास मायूस सा रहता हूँ , आज कल ना जाने क्यू,
मैं कहाँ, कब, क्यू, क्या करता हूँ , मुझे खुद समझ नहीं आती,
इसकी वजह क्या है , क्या तुम समझाओगे मुझें।
भटक रहा हूँ मैं , खुद ही खुद के चुने रास्ते से ,
बेवजह सी बेवक़्त ही कुछ ना कुछ करता हूँ
उलझा हुआ सा हूँ खुद में ही कहीं,
क्या तुम सुलझाओगे मुझें।
एक बात ज़ेहन में मेरी , खटकती है ,
पूछूँ तो क्या तुम बताओगे मुझें।
-