कोई अस्पताल में साँसे गिन रहा ,कोई कमरों की हदबंदी में कैद है !
किसी का कोई नहीं रहा , कोई अपनों की ख़ातिर अपनों से दूर है !
" मौत " का सामान इस क़दर बंट चुका है सब जगह ,
कि भिखारी हो या शहंशाह , आज मरने का खौफ़ सबको जरूर है !
" कुदरत " से खिलवाड़ करेगा . ? तो अब भुगत ,
इतना हो हल्ला किस बात का , सब तेरा ही तो कुसूर है !
चार दिन के " सियापे " से , अकड़ तो ढीली पड़ ही गयी है ,
चल हट , मुझे पता है कि तू फिजूल में " मग़रूर " है !
देखो - देखो , आदमी कितना मजबूर है !
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