नौ महीने तक प्रसव वेदना सहकर भी,
हमें जीवन का दान देती है ;
हां! वो महान मुरत,
माँ ही तो होती है।
सारे गमो को खुद सहकर,
अपने लाडले को मुस्कान देती है ;
हां! वो दया की मुरत,
माँ ही तो होती है।
अपनी सारी इच्छाओ का त्यागकर,
हमे इच्छापूर्ती का वरदान देती है ;
हां! वो त्याग की मुरत,
माँ ही तो होती है।
अपने बच्चों के चेहरे पर सिकन देखकर,
पल भर में तड़प उठती है ;
हां! वो ममता की मुरत,
माँ ही तो होती है।
ममत्व का यह ऋण प्राण देकर भी,
हम कभी नहीं चुका सकते हैं ;
सीता-राम या राधा-श्याम धरती पर,
माता के ही कोख से पैदा होते हैं।।....
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------©Happy Singh(HK)...
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