अब इस महामारी की, कितनी लाशें बिखरी हैं किनारों पर, न जाने कितनी गंगा में बहा दी गई और कितनी मिट्टी में दफना दी गई शमशानों में भी जगह नहीं इन्हे जलाने की, न जाने कितनों को अनाथ बना दिया किसी ने माँ तो किसी ने पिता, किसी ने भाई किसी ने बहन खो दिया...।😔