है गुज़ारिश आपसे कि यूं शरमाया न कीजिए,
नज़रें मिला के यूं नज़रें झुकाया न कीजिए,
दबे लबों से यूं मुस्कुराया न कीजिए,
आ आ के वापस जाया न कीजिए,
एक हाथ थाम के दूसरे से छुड़ाया न कीजिए,
पत्थर भी पिघला दे ऐसी भोली सूरत बनाया न कीजिए,
आंखों में झलकता है जो प्यार उसे छिपाया न कीजिए,
इतना मीठा मरीज़ कर देगा कि यूं प्यार से नाम मेरा बुलाया न कीजिए,
है गुज़ारिश आपसे कि यूं शरमाया न कीजिए!
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