जो भी कुछ ये हो रहा है, क्या कहें।
सारा सुकूँ सब खो रहा है, क्या कहें॥
मैं तो उसकी यादों में बैठा हूँ बाहर,
वो कौन अंदर सो रहा है, क्या कहें॥
औ' इब्तेदा-ए-इश्क़ का है ये असर,
वो हँसते हँसते रो रहा है, क्या कहें॥
वो क्यों बगैर अपना ग़रेबाँ झाँके ही,
ग़ैरों के दामन धो रहा है, क्या कहें॥
पैरों में छाले हैं फिर भी क्यों 'ग़ज़ब',
तू खुद ही कांटे बो रहा है, क्या कहें॥
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