गरीबी
गरीब हूँ साहब , पर ख्वाब मेरे भी है,
ख्वाब बहुत है, मगर हालतों को देख, ख्वाहिशे रोज दफन करनी पडती है मैं हर मौसम का कहर झेलता हुँ, एक भूख का कहर झेलता हूँ।
इसीलिये तो आज जिन्दगी के बड़े- बड़े खेल खेलता हूँ ।
गरीब तो हूँ, साहब पर सपना पूरी करने की चाह मैं भी रखता हूँ।
जहा अमीर बच्चे A.C aur light में भी पढ़ नही पाते,मैं इधर कड़ी धुप ओर अन्धेरे की रोशनी में दिये में भी पढ्ने की चाह रखता हूँ ।।
साहब गरिब तो हुँ मैं , लेकिन हर तहजीब रखता हुँ।
जहा अमीर मुझे देख जुते मारते हैं, मैं उनकी स्वागत में पलके बिछाने का बड़ा दिल रखता हुँ।।
गरिब तो हुँ ही , मगर साहब अच्छा खाने का मन में भी रखता हुँ।
जहा अमीर लोग burger pizza, फेंक जाते है, उनकी झूठी प्लेट उठाने का मन मैं भी रखता हुँ।।
गरीब तो मैं हुँ ही साहब , मगर हर बोझ उठाने का जज्बा भी रखता हूँ ।
जहा अमीरों के बच्चों माँ बाप की दौलत को , चंद पार्टी में उड़ा आते है, मैं उतने ही कमाई के पैसे माँ बाप का पेट पालने के लिये रखता हुँ।
अब में क्या कहूँ, साहब आज इस गरिब का मजाक , अमीरो के साथ कुदरत ने भी बनाया है।
ख्वाब दिखाता तो हैं मगर पूरे करने में पीछे हठ जाता हैं। और उसकी खुदाई भी क्या कमाल हैं,आज उसने खुद को भी बिकाऊ बनाया है।।
साहब, आज मैने अपने सारे ख्वाबों को गरीबे तले दबाया है।।
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