बहती कल- कल सी आवाज़ लिए ।
मैं भी जल की ही एक धारा हूं ।।
नाम से गंगा, तो कभी हुगली- भागीरथी ।
तो कभी मैं मां, फैलाए दामन का किनारा हूं ।।
देवी कह कोई भेंट चढ़ाए, तो कोई पावन होने स्नान करन आए ।
मैं अपने सभी लाडले- लाडलियों की अजन्मी माता हूं ।।
पर मूल्य मेरा तुम जानो, जब ऑनलाइन जल मेरा मंगाते हो
और ख़राब तो नहीं हो जायेगा की पूछकर, expiry date भी निकलवाते हो ।।
क्यूं मुझे स्वच्छ बनाने की, नौबत आज ये आई है ?
क्यूं नहीं साथ नमामि गंगे के, जब विपत्ति इस पर आई है !!
अंत में विलीन भी मुझमें ही होना है, रास्ता स्वर्ग- पाताल का मुझसे ही जो होकर जाता है ।।
"पर कभी जीते- जी मुझे मां का ममत्व दे सकोगे तुम प्यारे?" ये नहीं समझ मुझे आता है!!
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