यह बात उस समय की है जब मैं महज़ 11 वर्ष की थी, दुनिया की छवि मेरे लिए वैसी ही थी जैसी मेरी माँ ने उनकी मौत से पहले मुझे कहानियों में बताई थी, हर तरफ अच्छाई की चादर ओढ़े सज्जन लोगों से भरी ये दुनिया, यही मेरे लिए दुनिया और लोगों की वास्तविकता थी, दुनियादारी और सही-गलत की समझ से परे एक दिन मैं अपने घर से बहुत थोड़ी दूर शाम के समय बाकी बच्चों के साथ खेल रही थी, खेलते हए मेरा पैर एक पत्थर से टकराया और मैं गिर पड़ी, खड़ी हुई तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी स्कर्ट के पास मुझे खून लगा हुआ दिखाई दिया। मुझे लगा कि गिरकर चोट लगने की वजह से वह खून आ रहा है। मैं खून देखकर डर गई और जवानी की नासमझी के साथ मैं दौड़ते हुए पास बैठे मेरे पड़ोस के एक चाचा के पास गई, जिनकी उम्र करीब 30 वर्ष थी। वहाँ जाकर मैंने उनसे कहा कि गिरने की वजह से मुझे चोट लग गयी है और मेरे खून आ रहा है, जवानी की समझ और दरिंदगी की सोच के साथ उसने मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि तुम मेरे घर चलो मैं तुम्हारे मरहमपट्टी कर दूँगा। मेरी माँ की बताई हुई दुनिया की उसी सज्जन छवि को मन में बैठाये हए मैं उसके साथ जाने को तैयार हो गई, वहाँ वह मुझे एक खाली सुनसान घर में ले गया जहाँ कोई भी नहीं था। उसने मेरी स्कर्ट उतारी और मैंने देखा कि पूरी स्कर्ट पर खून दिख रहा था, जहाँ से खून आ रहा था उस जगह के लिए मुझमें महीन सी समझ थी, मैं कुछ बोल पाती इससे पहले...
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