बरसात
पल भर की याद,
वो पल भर का साथ,
याद है मुझको,
तेरे संग उस शाम की,
पहली बरसात...
आधी सूखी सी,
आधी भींगी सी,
छतरी पकड़े खड़ी थी,
सड़क किनारे,
कुछ सहमी, कुछ गीली सी...
तेरा यूँ छुप छुप कर दीदार,
जो करना भाया था,
हम लाख रूकें सड़कों पर..
पर मुझे तुझ सा ना कोई नज़र आया था।।
तेरी खूबसूरती का कायल होने से मैं भी,
कहाँ बच पाया था...
अब क्या बताऊँ,
कुछ पल में ही तूने क्या क्या सपने बुनवाया था।।
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