जानें , कितनो का जलना लिखा होता हैं ।
गर इक औरत , अपने हिसाब से चले ।
औरतें–मर्द बराबर जलते हैं ।
सारे ताक बिछाए रहते ।
इक कदम लेती नहीं आगे ,
कि ये उसे , पिछे खींचते ।
इस सोच में डूबे रहते ,
कैसे उसे महसूस कराए ।
वो लांघ रही , अपने दायरे ।
धूप–छांव वाले इस मंजर में ,
सनक और पक्के इरादों में पकती ।
कभी वो हार नहीं मानती ,
अपनी कोशिश पूरी करती ।
जानें , कितनो का जलना लिखा होता हैं ।
गर इक औरत , अपने हिसाब से चले ।
औरतें–मर्द बराबर जलते हैं ।
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