माना इंसान को अपनी दोनों आँखों कि तुलना नहीं करनी चाहिए ,
पर तुमने तो कहा था , इश्क़ में , की नज़ारे सभी एक जैसे लगने लगे है ,
खूबसूरत से , खुशनुमा से ,
मुँह मोड़ने का इतमीनान कहाँ से आ गया यह ?
चलो फ़िर भी , बाट लो आज अपनी मुहब्बत को ,
बस , जब बटवारा खुद का होगा , तब रिहा होने की मांग मत करना।
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