आओ तुम्हें हवाओं की कहानी सुनाता हूं।
वक्त बेवक्त निकले जो घर से,
ऐसे परिंदों की जिंदगानी बताता हूं।
शख़्स हैं दो लेकिन जमाने में हजार।
ये हैं तो हैं रोटी, कपड़ा और मकान,
दुनिया में आए हम बन जिनके मेहमान।
हैं जिनकी मोहब्बत के हम तो निशान,
चरणों की धूल हम, वो हमारे भगवान।
प्रतीक बताने चला आज उनके नाम,
एक जैसे मां सीता और दूसरा राजा राम।
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