खनकते हुए कानों में सितार बालियां
देखा अब के पहने हुए यार बालियां
लिखा है बनारस से जब आओगे इधर
भूलना न लाना अब की बार बालियां
तुमने जो पहनाई थी जाते हुए मुझे
रोज़ निरखती है सूना द्वार बालियां
शर्ट में होगी या फिर कुर्ते की जेब में
तुम गए बिछड़ गई दो चार बालियां
आज भी पहनें हुए तुम्हारी दी हुई
रखी है चाहे पास में हजार बालियां
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