खुदा ये कैसा है तेरे मिलन का खेल?
हर शख्स यहाँ मोहरा बन बैठा है,
चाल तेरा है और मोहब्बत को जेल।
इंसान अबतक समझ ना पाया,
मोहब्बत में बाज़ी,क्यों उनके हाथ न आया?
रानी बचाने के लिए,यहाँ हर सैनिक ने जान गवाया।
देख रहा है वो शिद्दत हमारी इन कुर्बानियों में,
सुर्ख आँखों से जब ये लहू टपक आया।
कुछ इस तरह ख़ुदा नें इंसानी फिदरत आजमाया।
मुख़ातिब हुआ इंसान जब उस खुदा,
हज़ारों शिक़वे गीले सुनने से पहले
खुदा ने इंसानों से बस एक सवाल कर आया...
मोहब्बत होती अगर दिल से तो,
आसानी से मिलती हैं जो बाज़ारों में,
उस तवायफ को मोहब्बत क्यों नही मिल पाया?
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