QUOTES ON #DRONIKA

#dronika quotes

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27 APR 2019 AT 14:19

हद से ज्यादा हो जाए मोहोब्बत.....
तो सिर्फ दूरियां ही मिलती है....
इब्तिदा-ए-इश्क करना है आसान....
ताउम्र तो आख़रिश मजबूरियां ही मिलती है...

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3 NOV 2018 AT 15:37

*मैं स्त्री हूँ*

(रचना अनुशीर्षक मे)

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12 JAN 2019 AT 14:25

ये तब्बसुम, तरन्नुम, मुस्कुराते आरिज़, ये अदा...
उसकी हुस्ने-रानाई पर महो-अंजुम भी है फ़िदा...
बेनूर है माहताब भी उसकी आबो-ताब के आगे....
ये हलावत, मलाहत, लताफ़त बना के हैरान है ख़ुदा....


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23 AUG 2019 AT 17:45

गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...
शहर के दलदल में जाकर, वापस आता कौन है...❣️

साय-ए-शजर की, तलाश करता है हर पल...
हर कोई मकां बनाता है, शजर लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

अमीरे शहर है, यह साहिब, गरीबों को लूट लेता है...
उस ख़ाना-ख़राब को, गले से लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️

अगयारों से जब से, राबता यूं हो चला है...
विसाले-यार की याद,अब दिलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️

उनके सुख़न का क़रीना, गैरों में था मशहूर...
पर बूढ़ी अम्मी-अब्बू से, अदब से पेश आता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

इस "मैं" और "मय" ने ही, फांसले बढ़ा दिए इतने...
इस ख़ुदी को दबा, दूरियां मिटाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

उधार की सी जिंदगी लिए, घूमते हैं दर-बदर...
सरफ़रोशी की मसअल, दिल में जलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

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8 AUG 2019 AT 20:49

अहदे -जवानी में हुस्न पर....
इठलाया करते थे वो यूं....
ख़ुदी में झूम कर बारहा....
भरमाया करते थे वो यूं....
ज़ईफ़ी ने आज हुस्न की....
रंगत यों बदल के रख दी....
जवानी में अपने बांकपन पर....
खूब इतराया करते थे वो यूं....

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8 SEP 2018 AT 22:37

मेरी मुस्तक़िल महरूमियों पर भी मुझे उठा लेते हैं....
मेरे मोअल्लिम, मेरे बाबा, मुझे हर हाल में संभाल लेते हैं....!!

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16 OCT 2018 AT 12:46

ग़फ़लत-शिआर से ही ख़ता होती है....
इस ख़ता से अब खुद को उबारा जाये....

अहले दिल से, अहदे-वफ़ा बन कर....
आख़रिश मसर्रतो को फिर से पुकारा जाये....

ज़ुनू-सिफ़ात से वाबस्तगी क्या रखना....
जो जाँ-सपारी कर दे उसे ही दिल में उतारा जाये....

मंजिले-तस्कीं लगती थी, कभी महबूब की गली....
रहे-आम है अब कौन, वहां दोबारा जाये....

मैं गै़र मारुफ़ ही सही, तुम दिल में मेरे बसते हो....
अब किस-किस नाम से हमनवां को पुकारा जाये....

शब़ों के राज़ खुल जाए तो क्या होगा असर....
कशमकश ये है कि, अब सहर को कैसे गुजारा जाये....

रुस्वा-ए-दहर हो गये, तो भी क्या....
इस फ़र्द-फ़र्द जिंदगी को एक बार फिर से संवारा जाये....

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25 SEP 2018 AT 22:12

अरबाबे-जफ़ा बनके....
उसे दिलरुबाई याद आई....
इस बार ना जाने क्यों उसको....
मेरी ख़ुदाई याद आई....

सैर-ओ-तफ़रीह का शौक भी....
यूं आम हो चला है....
आज जाने क्यों उसे....
मेरी हर भलाई याद आई....

अहदे-जवानी यूं ही....
शबे-वस्ल मे थी गुजरी....
पीरी में जाकर फिर क्यों....
मेरी जुदाई की याद आई....

पुर्सिश ना बचा कोई....
आज उसके आशियां में....
कदूरत रख कर दिल में....
मेरी आशनाई याद आई....

अर्जे-हयात की क्योंकर....
जुस्तजू रही हमेशा....
मेहरूमिए-किस्मत में आज....
फिर से परसाई याद आई....

आईनाखाने में यू रहना....
जिन्दाँ ही लगता मुझको....
मज्लिसी भीड़ में....
फिर क्यों शानाशाई याद आई....

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28 AUG 2018 AT 19:20

जब से तू रूबरू नहीं होती....
जाने क्यों तेरी जुस्तजू नहीं होती....
आकर समा भी जाये आगोश में मिरे....
पर अब तेरी आरजू नहीं होती....

तेरी तिश्नगी भी दरिया सराब जैसी है....
मेरी हालत ख़ाना ख़राब जैसी है....
अब तो तर्के-मरासिम का भी गम नहीं है मुझे....
तू मेरी ही रहती गर बे-आबरू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....

वादा-ए-फ़र्दा पर अब ऐतबार नहीं होता....
इस जहां में हर कोई ग़मगुसार नहीं होता....
मैं कम आमेज़ ही रहता गर तुझसे ना मिलता तो....
महफ़िल जमाने की सब की ख़ू-बू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....

ना-पुरसा है कोई और ना हीं पासे-हमराहा है....
दरीदा-लिबास हूं, ना साथ में साया है....
मेयारे-वफ़ा से कोई वास्ता तो रखना था....
हर फूल की किस्मत में क्यों खुशबू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....
जाने क्यों तेरी जुस्तजू नहीं होती....

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11 AUG 2018 AT 15:16