गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...
शहर के दलदल में जाकर, वापस आता कौन है...❣️
साय-ए-शजर की, तलाश करता है हर पल...
हर कोई मकां बनाता है, शजर लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️
अमीरे शहर है, यह साहिब, गरीबों को लूट लेता है...
उस ख़ाना-ख़राब को, गले से लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️
अगयारों से जब से, राबता यूं हो चला है...
विसाले-यार की याद,अब दिलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️
उनके सुख़न का क़रीना, गैरों में था मशहूर...
पर बूढ़ी अम्मी-अब्बू से, अदब से पेश आता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️
इस "मैं" और "मय" ने ही, फांसले बढ़ा दिए इतने...
इस ख़ुदी को दबा, दूरियां मिटाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️
उधार की सी जिंदगी लिए, घूमते हैं दर-बदर...
सरफ़रोशी की मसअल, दिल में जलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️
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