घर की लक्ष्मी देवी नामों से बुलाते हैं
मगर सच में क्या ये सम्मान दे पाते हैं!?
कभी बोझ तो कभी मुसीबत बोलकर
उसके अरमानों को अंदर ही दबाते हैं!
शादी के नाम पर बाज़ार खोल कर
अपने ही बेटे की बोली ये लगाते हैं !
तिल - तिल तानों में मरती वो है
मगर उसके ऊपर तरस न खाते हैं!
इस समाज को सब मिल कर आओ
क्यूं नही दहेज़ मुक्त समाज बनाते हैं!
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