मैं न रहूं जो,
तो उन्ही गलियों में,
आ जाना,
मैं हर कदम में,
फिर से साथ तुम्हारा,
निभाउंगा !
मैं न रहूं जो,
तो आना छत की,
मुंडेर पर,
पूनम के उस चाँद में,
मैं अक्स तुम्हें अपना,
दिखाऊंगा !
मैं न रहूं जो,
तो फिर से आना,
उसी गुरुद्वारे पर !
ओढ़ कर दुप्पटा वही सुर्ख लाल,
मैं पकड़ कर उसे,
फिर चक्कर चार लगाऊंगा !!
-