छोटू की नोटबन्दी// लघुकथा
10 नवंबर की तारीख छोटू के लिए एक ऐसा दिन था जिसको वो चाहते हुए भी भुला नहीं सकता था। आज उसकी माँ की बरसी थी। पिछले साल 8 नवंबर को जब उसे सेठ ने उसके काम को देखकर 1000 रुपये बख्शीश में दिए थे, वो बहुत खुश हुआ था और दौड़ के घर तरफ गया था 1000 के नोट को लहराते हुए। माँ अधमरी सी, डेंगू से ग्रस्त, बिस्तर पर पड़ी थी। तुरंत उसने दवाई की पर्ची ली और दौड़ा दवाई की दुकान की तरफ। लेकिन उस 1000 के नोट को देख कर दुकान वाले ने बताया कि यह मान्य नहीं है और इसे बदल कर लाए। वो 2 दिन तक बस उस 1000 की पत्ती को बदलवाने के लिए सेठ के पास रोया, पड़ोसियों से गुहार की लेकिन कुछ हल नहीं मिला। हाँ नोटेबन्दी ने उसकी माँ की साँसे बंद कर दी थी। अब इसलिए वो सिर्फ खुल्ले पैसे रखता है। कहता है छोटू हूँ तो नाम के हिसाब से औकात भी दिखनी चाहिए नहीं तो ख़ामियाज़ा ज़िन्दगी भर के लिए मिल जाएगा।
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