🚜 🅱🆄🅻🅻🅳🅾🆉🅴🆁 /बुलडोज़र 🚜
एक में सन्नाटा और दूजे में तूफ़ां रहते हैं।
एक ही इन्साँ में कैसे, दो दो, इन्साँ रहते हैं?
फोन नहीं आता उसका, जब से शहर छोड़ा है।
शहर छोड़कर, लोग फिर, अपने कहाँ रहते हैं।।
ईंट का पत्थर से जवाब, क्यों देते हो यारों?
घाव तो भर जातें हैं, पर बाकी निशाँ रहते हैं।।
प्यार के बदले, प्यार की, ख़्वाहिश बुरी है यारों।
उम्मीदों से, भरे दिल, अक्सर वीराँ रहते हैं।।
आज नहीं तो कल, बुलडोज़र, तोड़ गिराएगा।
होटल के पीछे, जो कुछ, कच्चे मकाँ रहते हैं।।
क्यूं पिघल जाता है 'अमित' झूठी मुस्कानों पर?
भोली शक्लों के पीछे, अक्सर शैतांँ रहते हैं।।
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