शाम की ख़ामोशी और हल्के चाँद की रोशनी
सरसराती ये मदहोश सर्द हवा के झोंके
कानों में कुछ फुस-फुसाते हैं
मानों मुझें कोई राज़ बताना चहाते हैं
तारों का ये अनमोल नज़ारा
कहता हैं कोई मुझे हैं मुझसे भी प्यारा
पलकों में नमीं, होठों पर मुस्कुराहट हैं
किसी जाने पहचाने की जैसे आई आहट हैं
कौन हैं ये जो दिल को छू रहा हैं
कौन दूर रह कर दे रहा सज़ा हैं
क्या मैं उसे जानती हूँ??
क्या इस अपने अज़नबी को पहचानती हूँ
ये कैसी हैं कश्मकश, ये कैसी हैं उलझन
लो जा रही हैं फ़िर से डोली में एक दुल्हन
हँसती हैं दुल्हन, पर किस को खबर हैं
दिल में दफ़न इसके सपनों का घर हैं
-