विरह आग है जिसमें शरीर नहीं जलता जलती है तो केवल आत्मा दो आत्माओं के मिलन से बना रिश्ता जब आख़िरी साँस लेता है तो बिलख पड़ता है आसमान रो देती है धरती और शोक में डूब जाता है पूरा ब्रह्मांड विरह हलाहल(विष) है जो गले में ही कहीं अटका रहता है जिसे निगला नहीं जा सकता और उगलना भी मुश्किल होता है जब विरह वेदना चरम पर पहुँच जाती है तब नर्म सा हृदय कठोर बनने लगता है और फिर अंत हो जाता है संयोग-वियोग के इस खेल का
मैं प्रतीक्षा हूँ तुम्हारे लौट आने की प्रतीक्षा तुम हठ हो कभी न लौटने का हठ यह प्रेम एक भ्रम मात्र है जो मुझे तुमसे जोड़े रखता है तुम्हारा स्पर्श बारिश की कोमल बूंदे हैं और मेरा जिस्म कोई प्यासा मरुस्थल मेरे कान किसी खाली मकान से लगते हैं जिनमें गूँजती हुई तुम्हारी हँसी किसी मधुर संगीत सी लगती है मेरा ज़ेहन खुला आसमान प्रतीत होता है जिसमें विचरती तुम्हारी यादें किसी उन्मुक्त पँछी सी लगती है